Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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दलित साहित्य में कवि मलखान सिंह की चेतना

    1 Author(s):  RAVINDRA KUMAR

Vol -  10, Issue- 8 ,         Page(s) : 11 - 16  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

आधुनिक समय में साहित्य का केन्द्रिय विषय दलित विमर्श, स्त्री विमर्श,किन्नर विमर्श है । हमारे समाज में आज भी दलित समाज को सवर्ण से समाज से बहिष्कार सहना पड़ता है । आये दिन समाचार पत्रों फेसबुक ,न्यूज चैनलोें आदि के माध्यम से दलितों पर हो रहें अत्याचारों व सामाजिक बहिष्कारों की खबर सुनाई देती है । सवर्णों ने अपना विधान रचना कर उसका प्रयोग दलितोे पर किया है ,अन्य लोंगों पर नहीें। जैसे सवर्ण से कोई अपराध करता है तो उसे दण्ड न देकर छोड़ दिया जाता है ज्बकि दलितों को कठोर दण्ड दिया जाता है । दलित समाज जहां एक ओर अपने अन्दर एक मध्यवर्ग के उदय से जुड़ी समस्याओं से जुझ रहा है वहीं उसे दलित आंदोलनों की आहट भी सुनाई दे रहीें हैं । वास्तविकता यह है कि दलितोें को उसके अपेक्षित सम्मान के साथ नही ंदेखा जाता है। आज भी यदि बाहरी मन से सवर्ण भेदभाव न करने का दावा करता है लेकिन अपनी मानसिकता के हाथों मजबूर होकर वह दलित समाज के लोंगो से सार्वजनिक स्थलों पर भेदभाव व समाज से बहिष्कृत करने से पीछे नही हटता है । इन्हीं स्थितियों का वर्णन मलखान सिंह ने अपनी कविताओं में किया है । दलित वर्ग के साथ सदियों से जो निमर्म, निष्ठुर और अमानवीय व्यवहार निरन्तर हुआ है। उसके परिणाम स्वरूप कला, साहित्य, संस्कृति आदि से उसका नाता टूट गया था और वह फिर से लम्बे समय तक उसे अपनी भागीदारी के लिए तरसना पड़ता था और उस छटपहाट में उस दलित वर्ग का जो आक्रोशित स्वर निकला उसे आज दलित-चेतना का नाम देना उचित है। प्रस्तुत शोध-पत्र में दलित साहित्य में कवि मलखान सिंह की चेतना पर विचार करेंगे ।

1- डाॅ प्रकाश कुमार ,दलित चिंतन-विश्वभारती पब्लिकेशन  पृ0- 14, 23, 41,।
2- मलखान सिंह ,सुनो ब्राह्मण !- रश्मि प्रकाशन पृ0- 63, 68, 81 ।
3- मलखान सिंह ,ज्वालामुखी के मुहाने - रश्मि प्रकाशन पृ0- 16 , 17 ।
4- राहुल साकंृत्यायन, दोहा कोश - गीत (मूल) पृ0- 10  

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