तृतीयपंथी विमर्श और हिंदी कहानी
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Author(s):
DR. VIRENDER SINGH KASHYAP
Vol - 10, Issue- 12 ,
Page(s) : 18 - 27
(2019 )
DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
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Abstract
आज विश्व ध्रातल पर ऐसा कोई राष्ट्र नहीं जहाँ तृतीयपंथी समाज के लोग ना हो। यह वर्ग समाज में अपने लिंगविहीनता के रूप में पहचाना जाता है। हमारे समाज में तृतीयपंथी समाज अनन्तकालों से उपेक्षित और हाशिए पर रहा है। यह वर्ग समाज में अपनी यौन अस्मिता के कारण सदैव उपहास का पात्रा बनता रहा। समाज में इन्हें वह महत्व, सम्मान और अध्किर नहीं मिला जिसके ये अध्किरी हैं। समाज इन्हें घृर्णित मानकर हेय दृष्टि से देखता रहा।
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