आलोचना का उद्भवः संस्कृत साहित्य के सन्दर्भ में
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Author(s):
PRATIBHA TIWARI
Vol - 12, Issue- 11 ,
Page(s) : 11 - 21
(2021 )
DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
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Abstract
आलोचना का आरम्भिक स्वरूप संस्कृत साहित्य में बहुत पहले से मिलने लगता है । किन्तु आज हमारे पास उपलब्ध ग्रन्थ आचार्य भरत का नाट्यशास्त्र है । आचार्य भरत ने अपने वृहत् नाट्यालोचन ग्रन्थ नाट्यशास्त्र में नाटक के विभिन्न तत्त्वों पर विचार किया है । इस प्रौढ़ वैचारिक विवेचनयुक्त ग्रन्थ का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि आलोचना की यह परिपाटी इससे भी पुरानी है । नाट्यशास्त्र के पहले भी काव्यशास्त्रीय परम्परा संस्कृत साहित्य में विद्यमान थी, किन्तु नाट्यशास्त्र के पहले लिखे ग्रन्थ आज अप्राप्य हैं ।
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