संस्कृत वाङ्गमय में प्रकृति की परिकल्पना: प्रकृति का साहित्यिक एवं अध्यात्मिक महत्त्व
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Author(s):
SUDHA MISHRA
Vol - 15, Issue- 6 ,
Page(s) : 17 - 24
(2024 )
DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
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Abstract
भारतीय संस्कृत वाङ्गमय (साहित्य) में एक कहावत बहुत प्रसिद्द है –
प्रक्षलानादि पस्य दूरादस्पर्शनं वरं।
पैर को कीचड़ में सानकर धोने से अच्छा है कि पैर में कीचड़ लगने ही न दिया जाये। यह वाक्य पर्यावरण प्रदूषण के सन्दर्भ में कही गई है ।
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