Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 164    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

आधे अधूरे: अपूर्ण में पूर्ण की तलाश

    1 Author(s):  DR. PRAVIN PANKAJ

Vol -  9, Issue- 4 ,         Page(s) : 37 - 42  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

आधे अधूरे श्री मोहन राकेश के तीसरी नाटक रचना है| इस नाटक में राकेश जी ने समाज की मध्यवर्गीय परिवार की अवस्था का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है| इस नाटक के माध्यम से राकेश जी ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि विवाह हो परंतु यदि कोई स्त्री अपने पति में संसार के सभी गुण एक साथ देखने की अपेक्षा करती है तो उस स्त्री और उसके संपूर्ण वैवाहिक जीवन का परिणाम बड़ा ही दुखद होगा| आधे अधूरे में विवाहोपरांत ‘पूर्ण पुरुष’ की खोज के असंभव बताया गया है| नाटक में दो प्रमुख पात्र हैं- प्रथम महेंद्र नाथ और दूसरी उनकी पत्नी सावित्री|

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details