Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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वाक्यार्थ बोध का स्वरूप (मीमांसा व व्याकरण के संदर्भ में)
2 Author(s): KULDEEP , MANOJ ARYA
Vol - 4, Issue- 3 , Page(s) : 137 - 147 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
अर्थचिंतन की विशाल परंपरा भारत की विभूति है। ऋग्वेद आज आर्यजाति का प्राचीनतम गौरवग्रंथ है। उसमें अनेकत्र भाषातत्व पर विस्तृत विचार किया गया है। यद्यपि यह चिंतन प्रमित दर्शनों के क्षेत्र से ऊपर है, फिर भी वेदों का ऋषि जिस प्रकार भाषा के विषय में सोचता था वह बहुत बड़ा प्रमाण है कि वैदिक अर्थविचार की महती गरिमा उस काल में मान्य थी।