Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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कालीदास के नाटकों में रूपसौन्दर्य की अवधारणा
1 Author(s): AKHILESH KUMAR TRIPATHI
Vol - 5, Issue- 2 , Page(s) : 77 - 92 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
सौन्दर्य जो एक विशेष प्रकार की मनोदशा है, अनुभव का विषय है। व्यक्ति इन्द्रिय-संवेदन या कल्पना के द्वारा इसका भावन या आस्वादन करता है। सौन्दर्य एक गुण है जो व्यक्ति के द्वारा किसी वस्तु पर आरोपित किया जाता है। इसका अनुभव करने वाला व्यक्ति आश्रय, विषयी, प्रमाता, सहृदय या रसिक कहा जाता है। अनुभूत होने वाली वस्तु आत्मबन, विषय, प्रमेय या दृश्य कही जाती है। सौन्दर्य वह गुण है जो वस्तु और व्यक्ति के बाह्य और अन्तर के सामंजस्य से उत्पन्न होता है।