Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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20वीं शताब्दी के संस्कृत-काव्यशास्त्रों में शब्दशक्ति विवेचन

    1 Author(s):  AKHILESH KUMAR TRIPATHI

Vol -  4, Issue- 4 ,         Page(s) : 156 - 161  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

भारतीय वाङ्‌मय में शब्द को ज्योतिपुञ्ज के रूप में कल्पित किया गया है। समस्त ज्ञान-विज्ञान हिीररइसी से अनुप्राणित है। सभी शास्त्र इसकी महिमा का गुणगान करते हैं। शब्द, जिसमें एक विशेष प्रकार की शक्ति निहित होती है। इस शक्ति में अभीष्ट अर्थ को प्रकाशित करने की शक्ति न हो तो अत्यधिक प्रयास करने पर भी अर्थ का बोध नहीं हो सकता। शब्द से अर्थ की प्रतीति कराने वाले तथा शब्द और अर्थ को परस्पर सम्बद्ध करने वाले व्यापार को शब्दशक्ति, शब्दवृत्ति और शब्दव्यापार के नाम से अभिहित किया जाता है।

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