Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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दलित आत्मपीडऩ की अभिव्यक्ति : कुछ दलित कहानियाँ
1 Author(s): REENA PARWAL
Vol - 5, Issue- 2 , Page(s) : 149 - 157 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
अश्पृश्य याने अछूत ... अर्थात जिसे स्पर्श न किया जा सके या जो छूने योग्य न हो। ऐसी विचारधारा यदि किसी वस्तु या पदार्थ के लिए रखी जाए तो कुछ सीमा तक ठीक है, परन्तु जब इस शब्द अछूत का प्रयोग प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना मानव के लिए किया जाए तो आश्चर्य होता है। दिमाग अजीब सी बैचेनी को झेलने लगता है, कुछ अनसुलझे से प्रश्न झकझोरने लगते हैं। क्या दो व्यकित भिन्न जातियोें मेें जन्म लेने के कारण समाज में असमान हो सकते हैं? एक जो ऊँची जाति में जन्म लेता है, उसे सिर उठाकर गर्व से जीने का अधिकार मिल जाता है और दूसरा जो किसी निम्न जाति में पैदा हो जाता है तो केवल अपमान और घृणा का दंश ही पाता है। ऐसा क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर हमारी प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं में है।