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                                        कर्मभूमि:एक दृष्टि
                                   
                                         
                                               
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                                           Author(s):   
                                                DR. SUDHA MISHRA
                                                 
               
                              Vol -  6, Issue- 1 , 
                         
                   
                                                     Page(s) : 3  - 7
                   
                                         (2015  )
                                         
                                             DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES  
                                        
                                         
                                Abstract
                                        
                                            उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद निर्विकार रूप से हिन्दी साहिन्य के सर्वश्रेष्ट उपन्यासकार है उनके पदार्पण से ही सही अर्थो में उपन्यास साहित्य के अभाव की पूर्ति हुई । वस्तुतः वे हिन्दी के पथम मौलिक उपन्यासकार एवं प्रवत्र्तक माने जाते है । प्रमचंद वह प्रथम भारतीय उपन्यासकार है  जिन्होंने भारत की विशाल जनता विशेशकर उत्तरी भारत के किसानों एवं निम्न मध्य वर्ग की विविधमुखी समस्याओं का बड़ी ही कलात्मकता, तत्परता तथा निष्पक्षता के साथ चित्रण किया हैं । प्रेमचंद ने अपने उपन्यास के माध्यम से कोई स्वप्नलोक अथवा इंद्रधनुष नहीं बनाया, उनके हाथ तो एक सीधी - सादी पेंसिल की भांति थे जिसने मानव जीवन की इतनी जीवंत रेखा खींची जो आज भी विशयगत एवं शिल्पगत प्रौढंता में बेजोड़ हैं ।
                                         
                                       
                                        
                                            
                                                  
 - डाँ॰ रामविलास शर्मा - प्रेमचंद, राधकृश्ण, नई दिल्ली, प्रथम छात्र संस्करण - 2011-डाँ॰ रामविलास शर्मा-प्रेमचंद और उनका युग, राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली, छठी आवृत्ति -2014- डाँ॰ प्रभाकर सिंह (संपादक), उपन्यास, मूल्यांकन के नए आयाम, प्रोग्रेसिव बुक सेंटर, वाराणसी, प्रथम संस्करण -2014-डाँ॰ रामविलास शर्मा, पंरपरा का मूल्यांकन, राजकमल प्रकाषन संस्करण -2009- रामस्वरूप चनुर्वेदी, हिन्दी गद्य: विकास और विन्यास लोकभारती प्रकाषन, चतुर्थ संस्करण 7 2008-डाँ॰ गोपाल राय; हिन्दी उपन्यास का इतिहास , राजकमल प्रकाषन, नई दिल्ली, पहली आवृत्ति - 2009- मधुरेरा, हिन्दी उपन्यास का विकास , लोकभारती प्रकाषन, नई दिल्ली चतुर्थ संस्करण - 2008- नंद दुलारे वाजपेयी, प्रेमचंद: एक साहित्यिक विवेचन, राजकमल प्रकाषन, प्रथम आवृत्ति - 2008 
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