Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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विरह की मनमोहक गायिका: मीराबाई

    1 Author(s):  DR. SUDHA MISHRA

Vol -  5, Issue- 11 ,         Page(s) : 3 - 6  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

मीराबाई भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा केअन्तर्गत कृष्ण भक्ति शाखा की अनन्य कवयित्री थी । वे श्रीकृष्ण के परम पदो में जीवन का सर्वस्व होम कर देने वाली हिन्दी काव्य की अमर साधिका एवं रास्थानी मिश्रित ब्रजभाषा की सरस एवं सुमधुर गायिका थी। इन्होने राजस्थान की रेतीली धरती पर प्रेम की श्रोततस्विनी प्रवाहित की थी जिसके सरस षीतल प्रवाह से समस्त राजस्थान आनन्द में मग्न हो उठा था। मीराबाई कृष्ण-भक्त कमनीय कुसुम थी जिन्हें कृष्ण प्रेम की अलौकिक मंदाकिनी का संज्ञा रदिया गया है इसलिए ये हिन्दी साहिन्य में ऊँचे स्थान की अधिकारिनी भी है साथ ही इनका काव्य-बगियाँ भिन्न-भिन्न कुसुमों की मनोहारिणी सुगंध से सुबासित है । विरह की गायिका मीराबाई का काव्य विरह के आंसुओं से ओत-प्रोत है इनका काव्य उन विरल उदाहरणों में से है जहाँ रचनाकार का जीवन और काव्य एक दूसरे में घुल मिल गए है उनकी कविता प्रेमा भक्ति की कविता है ऐसी कविता जो जग की कविताई से परे है उनकी कविता में दर्द के कुछ ऐसे मधुमन है जिन्हें हमने उनसे पहले भी पड़ा और सुना है परन्तु षायद ही इतनी तन्मयता और वेधक प्रभाव के साथ इतने पारदर्षी रूप में थी नहीं जैसा की हमें मीरा के काव्य में दिखता है जैसे- ”हरि मेेरे जीवन प्राण आधार और आसिरो नहिन तुमबिन तीनू लोक मंझान ।। “

  1. पल्लव (संपादक), मीरा एक पुनर्मूल्यांकन, आधार प्रकाषन, पंचकूलः, हरियाणा, प्रथम संस्करण-2007
  2. विष्वनाथ त्रिपाठी, मीरा का काव्य, वाणी प्रकाषन, द्वितीय संस्करण (आवृत्ति)-2010
  3. डा॰ बलदेव वंषी-संत मीरा बाई और उनकी पदावली, परमेष्वरी प्रकाषन, दिल्ली, प्रथम पेपर बैक संस्करण-2006
  4. डा॰ द्वारिका प्रसाद सक्सेना, हिन्दी के प्राचीन प्रतिनिधि कवि, श्री विनोद पुस्तक मंदिर आगरा-2, नवीनतम संस्करण-2011, 
  5. षिवकुमार मिश्र, भक्ति आंदोलन और भैिक्त काव्य, लोकभारती प्रकाषन, नई दिल्ली, पूर्णतः संषोधित प्रथम लोकभारती संस्करण-2010
  6. रामचंद्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, लोकभारती प्रकाषन, सातवाँ संस्करण-2010,े

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