Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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डाॅ. सुमन राजे के रास संबंधी विचार

    1 Author(s):  DR. SUDHA MISHRA

Vol -  6, Issue- 2 ,         Page(s) : 4 - 9  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

डाॅ. सुमन राजे ने अपने गद्य साहित्य में कई प्रतिमान गढे और उनमें सबसे ज्यादा प्रबल और प्रभावशाली उनका रास संबंधी विचार है। परास्नातक द्वितीय वर्ष में सुमन राजे ने रास परम्परा पर एक प्रबन्ध प्रस्तुत किया था जो समय एवं साधनों के कारण अपूर्ण ही था। डाॅ. दशरथ शर्मा एवं डाॅ. दशरथ ओझा द्वारा संपादित रस और रासान्वयी काव्य इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य है, विशेषतः इसकी विस्तृत भूमिका। जिन रास काव्यों को इसमें प्रकाशित किया गया है उनमें अधिकांश कहीं न कहीं प्रकाशित हो चुके हैं परन्तु उनका एकल संग्रह सराहनीय कार्य है। डाॅ. हरिशंकर शर्मा ’हरीश’ की एक पुस्तक आदिकाल से अज्ञात हिन्दी रास काव्य नाम से प्रकाशित हुई हैं। लेखक का अज्ञात विशेषण साभिप्राय प्रतीत होता है, जबकि उनके द्वारा विवेचित 18 रासों में से 17 न केवल विवेचित है वरन् कहीं न कहीं प्रकाशित भी हैं प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य भी सम्पूर्ण रास परम्परा को समग्र रूप से देखने का एक नवीन प्रयास है। सुमन जी हिन्दी रासो काव्य परम्परा के सम्बन्ध में लिखती हुई कहती हैं - ‘‘रास शैली उस सामर के सामान है जिसमें अनन्त धाराएँ निस्पद होकर खो जाती है।


  1.   डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 32
  2.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 13
  3.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 11
  4.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 11
  5.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 12
  6.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 11
  7.  डाॅ. सुमन राजे - हिन्दी रासो काव्य परम्परा, पृ.सं. 28

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