Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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काव्यप्रकाश के दोषविवेचन पर महिमभट्ट का प्रभाव

    1 Author(s):  JORAWAR SINGH

Vol -  6, Issue- 2 ,         Page(s) : 51 - 59  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

‘व्यक्तिविवेक’ के रचयिता महिमभट्ट अपने उत्तरवर्ती आचार्यों के विरोध के पात्र रहे, क्योंकि आनन्दवर्धन का ध्वनिसिद्धान्त परवर्ती आचार्यों में विशेष मान्य हुआ, अतः ध्वनिविरोधी कुन्तक एवं महिमभट्ट उत्तरवर्ती आचार्यों की तीव्र-आलोचना के भाजन हुए तथा इनके ‘वक्रोक्ति’ एवं ‘अनुमिति’ सिद्धान्तों को एक भी अनुयायी प्राप्त न हुआ। उत्तरवर्तियों ने इनके सिद्धान्तों को अपने ग्रन्थों में स्थान तो अवश्य दिया, परन्तु सिद्धान्त रूप में नहीं, अपितु स्वसिद्धान्त के पूर्वपक्ष के रूप में। व्यक्तिविवेक के टीकाकार ‘रुय्यक’ ने भी स्थान-स्थान पर महिमभट्ट की तीव्र आलोचना की।

  1. काव्यप्रकाश, मम्मट: ‘मुख्यार्थहतिर्दोषो रसश्च मुख्यस्तदाश्रयाद् वाच्यः।
  2. उभयोपयोगिनः स्युः शब्दाद्यास्तेन तेष्वपि सः।।’ (7/49)
  3. काव्यप्रकाश, मम्मट: ‘यद्यप्यसमर्थस्यैवाप्रयुक्तादयः केचन भेदाः तथाप्यन्यैरलङ्कारिकैर्विभागेन प्रदर्शिता इति भेददर्शनेनोदाहत्र्तव्या इति च विभज्योक्ताः।’ (सप्तम उल्लास, कारिका, वृत्ति भाग, पृ.सं. 300)
  4. काव्यप्रकाश, मम्मट: ‘अविमृष्टः प्राधान्येनानिर्दिष्टो विधेयांशो यत्र तत्।’ (सप्तम उल्लास, सूत्र 15)
  5. वही, सप्तम उल्लास, उदाहरण 160
  6. काव्यप्रकाश मम्मट: ‘अत्र द्वितीयत्वमात्रमुत्प्रेक्ष्यम्। मौर्वी द्वितीयामिति युक्तः पाठः।’ (सप्तम उल्लास, वृत्ति भाग, पृ.सं. 276)
  7. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 235
  8. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 183
  9. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, वृत्ति भाग, पृ.सं. 297
  10.  व्यक्तिविवेक महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, संग्रहश्लोक 94
  11. काव्यप्रकाश, मम्मट: ‘उच्छूनत्वमात्रं चानुवाद्यं न वृथात्वविशेषितम्। अत्र च शब्दरचना विपरीता कृतेति वाक्यस्यैव दोषो न वाक्यार्थस्य।’ (सप्तम उल्लास, वृत्ति भाग, पृ.सं. 297)
  12. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, संग्रहश्लोक 15, 17
  13. वही, द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 266
  14. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 185-93
  15. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 196-210
  16. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, सूत्र 19
  17. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट ‘स हि यथाप्रक्रममेकरसप्रवृत्तायाः प्रतिपत्तृप्रतीतेरुत्खात इव परिस्खलन खेददायी रसभङ्गाय पर्यवस्यति।’ (द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 287)
  18. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 289-319
  19. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 244-252
  20. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 287-319
  21. काव्यप्रकाश मम्मट: सप्तम उल्लास, वृत्ति भाग, पृ.सं. 321
  22. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 287-290
  23. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, सूत्र 20
  24. वही, ‘अत्र त्वं शब्दानन्तरं चकारो युक्तः।’ (सप्तम उल्लास, वृत्ति भाग, पृ.सं. 325)
  25. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 328
  26. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: ‘यतस्ते चादय इव श्रूयन्ते यदनन्तरम्।
  27. तदर्थमेवावच्छिन्द्युरासमंजस्यमन्यथा।।’ (द्वितीय विमर्श, संग्रहश्लोक 36)
  28. काव्यप्रकाश, मम्मट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 334, व 379
  29. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 334 व 379
  30. काव्यादर्श, दण्डी: 3/135
  31. काव्यादर्श, दण्डी: 4/13, 15
  32. काव्यादर्श, दण्डी: 4/13, 15
  33. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट, द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 333
  34. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, सूत्र 13
  35. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 387
  36. काव्यप्रकाश मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 234-36
  37. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 387
  38. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 283 तथा वृत्ति भाग, पृ.सं. 339
  39. व्यक्तिविवेक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, संग्रहश्लोक 15
  40. काव्यप्रकाश, मम्मट: सप्तम उल्लास, उदाहरण 161-64, वृत्ति भाग, पृ.सं. 227-78 व्यक्तिविवक, महिमभट्ट: द्वितीय विमर्श, पृ.सं. 185-193

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