Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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स्त्री-विमर्श, प्रतिरोध और स्त्री-विमर्श की धाराएँ
1 Author(s): DR. ANUJ KUMAR
Vol - 6, Issue- 5 , Page(s) : 3 - 9 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
‘संस्कृति’ शब्द अपने-आप में ‘प्रतिरोध’ को लिए हुए है । अपने सही एक ऐसा प्रतिरोध जो प्रत्येक प्रकार की अप-प्रवृत्ति से बचने-बचाने के लिए प्रतिबद्ध हो । स्त्री-विमर्श के संस्कृति विरोधी भूमिका का डंका बड़े जोरों-शोरों के साथ बजाया जाता है । तो ऐसे में स्त्री-विमर्श किस प्रकार की प्रतिरोधी संस्कृति की माँग करता है, जबकि माना जाता है कि संस्कृति अप-प्रवृत्ति विरोधी मूल्य गुच्छ का नाम है । संस्कृति और सभ्यता में अन्तर होता है, जबकि दोनों को युग्म के रूप में – कभी-कभी तो पर्याय रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो कि गलत धारणा है । किसी ने इन दोनों का अन्तर स्पष्ट करते हुए क्या खुब कहा है, संस्कृति सुगन्ध है तो सभ्यता फूल । सभ्यता मूर्त धारणा है, संस्कृति अमूर्त । सभ्यता दिखाई देती है, संस्कृति नहीं । सार्वजनिक व्यवहार के नियम संस्कृति कही जा सकती है, ऐसा करना सभ्यता और करने वाला सभ्य । सभ्यता संस्कृति पर आधारित व्यवहार होता है ।