कामायनीः छायावाद का उन्मेषः एक विवेचन
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Author(s):
HARGIAN
Vol - 6, Issue- 5 ,
Page(s) : 10 - 17
(2015 )
DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
Abstract
कामायनी नामक महाकाव्य आधुनिक हिन्दी छायावाद के प्रवर्Ÿाक बाबू जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित उच्च कोटि का महाकाव्य है। जिन दिनों हिन्दी काव्य पर पाश्चात्य रोमान्टिजम का प्रभाव परिलक्षित हो रहा था, उन्हीं दिनों सन् 1889 मेें जयशंकर प्रसाद जैसे महाकवि का काशी जी में अविर्भाव हुआ। उनकी मौलिक शिक्षा आठवीं तक ही सम्पन्न हुई। परन्तु उन्होनंे स्वाध्याय में संस्कृत, अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल, समाज-शास्त्र और हिन्दी काव्य का गहन अध्ययन किया। वे काशी जी में रहकर भारतेन्दु हरिशचन्द्र के साहित्य सृजन के वातावरण से बहुत प्रभावित हुए थे। फलतः उन्होनें पारिवारिक विषम परिस्थितियों से विकल होकर भी हिन्दी कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, जैसी विविध विधाओं का सृजन किया। कामायनी पाश्चात्य रोमान्टिजम से प्रेरित ऐसा ही महाकाव्य है। जिसमें प्रसाद ने भारतीय इतिहास की पौराणिक पृष्ठभूमि पर आधुनिक भारतीय समाज की पारिवारिक विषमता को भारतीय संस्कृति के माध्यम से उकेरा है।
- कामायनी, जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 25
- कामायनी, प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 45
- कामायनी, जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 44
- कामायनी, चिन्तासर्ग जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979 प्रथम, पृष्ठ स0 07
- कामायनी, लज्जासर्ग जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 43
- कामायनी, जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 135
- कामायनी, जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 22
- कामायनी, लज्जासर्ग जयशंकर प्रसाद प्र0 प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी संस्करणः 1979, पृष्ठ स0 79
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