Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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पाली की लोक प्रचलित चित्रण परम्परा
1 Author(s): DR. DHARMVEER VASHISTHA
Vol - 6, Issue- 6 , Page(s) : 7 - 10 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
मारवाड़ के चित्रकारो को उक्त दोनो वर्गोे ने प्रभावित चित्रण के कला तत्वो को लिया स्पष्ट होता है जिसकी विवेचना आगे कर सकेगें। मारवाड़ के प्रारम्भिक चित्र द्वितीय वर्ग के चित्रो से अधिक प्रभवित रहे प्रतीत होते है । द्वितीय वर्ग की ’रागमाला ’ चित्रों की सम्पूर्ण सचित्र प्रति से हिण्डोल राग 1575 ई. (चित्र सं 4) भारत कला भवन, वाराणसी संग्रह मे है । डाॅं. आनन्द कृष्ण के अनुसार यह गुजरात में 1600 ई. के आस-पास चित्रित हुई। मारवाड़ षैली की प्रारम्भिक प्रति ’पाली रागमाला’ की वेगपूर्ण आकृतियाॅं, कोणीयता, कम घेर के लहगे एवं पीछे फहराते दुपट्टे, जैसा वस्त्र-विन्यास,’चैरपचाषिका’, परम्परा वाले संयोजन भारत कला भवन की ’रागमाला’ के निकट है । इसकेे आधार पर यह संभावना होती है कि पाली रागमाला का चित्रण भारत कला भवन ’रागमाला ’की परम्परा मे हुआ है । कला भवन ’रागमाला ’के दृष्य रेखा प्रधान है । ’पाली रागमाला’ में रेखाओ के स्थान पर वर्णयोजना, आकृतियेा के मांसल मुख भरी हुई पृष्ठभूमि आदि नये तत्वों का समावेष हुआ है।