Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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भगवद्गीता के स्थितप्रज्ञ और निष्काम कर्मयोग की शिक्षा

    1 Author(s):  AKSHYARAJ MEENA

Vol -  6, Issue- 8 ,         Page(s) : 23 - 27  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

दर्शन के क्षेत्र में भगवद्गीता का महत्त्व अद्वितीय है। इसमें उपनिषदों के प्रायः सभी तत्वों को सरलतापूर्वक समझाया हुआ है। यह आध्यात्मिक और व्यावहारिक सामग्री से परिपूर्ण है। गीता वस्तुतः ‘सर्वशास्त्रीमयी’ है। सारे शास्त्रों का सार गीता में है। अतः ‘सारे शास्त्रों का खजाना’ कहने पर भी कोई अत्युक्ति नहीं होगी। गीता ज्ञान का भलीप्रकार से हो जाने पर सब शास्त्रों का तात्विक ज्ञान अपने आप हो सकता है। उसके लिए अलग परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं रहती। गीता स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारबिन्द से निकली है, इसलिए इसे सभी शास्त्रों से बढ़कर कहने में अत्युक्ति नहीं है।

1. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 55
2. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 56
3. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 38
4. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 47
5. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 48
6. श्रीमद्भगवद्गीता-डाॅ. विश्वानाथ शर्मा-द्वितीय अध्याय-श्लोक संख्या 50

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