Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह

    1 Author(s):  DR.URMIL RANI

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 11 - 16  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं।

1. मानक हिन्दी कोश, रामचन्द्र वर्मा, चैथा खंड, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग।
2. सूर-साहित्य का मनोवैज्ञानिक विवेचन, डाॅú शैल बाला अगिनहोत्राी, अभिलाषा प्रकाशन, कानपुर।
3. ‘सूर काव्य’ का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, डाॅú लाल बहादुर श्रीवास्तव, प्रथम सं. 1986, विद्या विहार, कानपुर।
4. आध्ुनिक मनोविज्ञान और सूर-काव्य, डाॅú कमला आत्रोय, प्रथम सं. 1976, वि.भू प्रकाशन, साहिबाबाद।
5. हिंदी साहित्य का इतिहास, आ. रामचन्द्र शुक्ल, प्रथम स. 2002, आठवासं. 2011, लोकभातरी प्रकाशन।
6. सामान्य मनोविज्ञान, सी.पी. सिन्हा, प्रकाशन, दिल्ली- 92 ।
7. सूर-सागर, विनय।
8. सूर-सागर, ब्रजेश्वर वर्मा, ज्ञानमंडल लिमिटेड।

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