Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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ग्रामीण क्षेत्रों में, बालिका शिक्षा के प्रति लोगों का दृष्टिकोण: एक अध्ययन

    2 Author(s):  KIRAN ASWAL , NARESH SINGH NEGI

Vol -  6, Issue- 9 ,         Page(s) : 9 - 12  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए ‘‘शिक्षा’’ एक महत्वपूर्ण घटक है। शिक्षा मानव को ज्ञानवान, सुचरित्र, स्वावलम्बी, बनाती है। यह एक ऐसी शक्ति है, जिसके द्वारा मनुष्यों की आंतरिक शक्तियों का विकास होता है। ‘शिक्षा’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष्’ धातु से बना है। जिसका अर्थ है- सीखना या सीखाना। अंग्रेजी में ‘म्कनबंजपवदश् का शाब्दिक, अर्थ ‘अन्दर से आगे बढ़ना’ होता है। शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुये महात्मा गाँधी जी ने कहा-‘‘शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मा के सर्वांगीण व सर्वोत्तम विकास से है।’’ इस प्रकार ‘शिक्षा’ वह शक्ति है जो मनुष्य को अन्धकार रूपी अज्ञान से प्रकाश रूपी ज्ञान की ओर ले जाकर उसका बौद्धिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक अर्थात् पूर्ण विकास करती है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य अनुशासन और प्यार से विद्या द्वारा मानव का चरित्र निर्माण करना है।

1. कृष्णमूर्ति, जे0, शिक्षा क्या है, राजपाल एण्ड सन्स, 2012
2. नानकचन्द, बालिका शिक्षा, विद्यावली प्रकाशन, नई दिल्ली, 2006
3. शर्मा, पवित्र कुमार, शिक्षा कैसी हो, ग्लोबल एक्सचेंज पब्लिसर्स, 2007
4. विजयवर्गीय, शंकर, भारतीय शिक्षा का इतिहास, राजपाल एण्ड सन्स, 2005
5. उत्तराखण्ड की जनगणना, 2011

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