Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
राजस्थानी लोक कथाओं में नारी की सामाजिक स्थिति
1 Author(s): DR. RINKU MUNDRA
Vol - 7, Issue- 6 , Page(s) : 5 - 8 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
मनुष्य स्वभाव और आवष्यकता से एक सामाजिक प्राणी है । यह अकेला ही अपनी दैनिक आवष्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं निरन्तर बढ़ती हुई आवष्यकताओं के समाधान हेतु उसे अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते है । इस प्रकार आपसी सम्बन्ध में मनुष्य एक प्रकार के व्यवहार को जन्म देता है । व्यवहारों का एक दूसरे के साथ यह सम्बन्ध परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता है । संक्षेप में, मनुष्य के पारस्परिक व्यवहारों के उस क्रम को, जिसमें वह एक दूसरे के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करता है और जो परिस्थितियों के अनुसार निरन्तर बदलता रहता है, ‘समाज’ कहा जाता है ।