Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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बड़ा होता बचपन

    1 Author(s):  SUDESH SAINI

Vol -  10, Issue- 4 ,         Page(s) : 11 - 13  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

बचपन एक ऐसा मीठा शब्द है जिसे सुनते ही लगता है मानों किसी ने शहद की मिठास हमारे जुबान पर रख दी हो। बचपन की कोमल यादें जब कभी दिल में उमड़ती है तो मंद मुस्कान की लाली गालों पर छा जाती है। जब कभी इन बंद पन्नों को फुरसत में बैठकर खोलते है तो इन पर जमी धूल की परतों पर यादों की हल्की-हल्की फुहार पड़ती है तो जो भीनी-भीनी सुगंध आती है तो लगता है मानों हमारा बचपन पुनः लौट आया है। बचपन वही है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, पंतगों को बस्तों में छुपाकर लाए, मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। कुल मिलाकर बचपन यानी शरारत, शैतानी और मस्ती की खिलखिलाती पाठशाला का नाम है। शिवपूजन सहाय की रचना माता का अचॅल में भी बचपन के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। तमाशें भी ऐसे वैसे नहीं, तरह-तरह के नाटक। चबूतरे का एक कोना ही नाटक घर बनता था। बाबू जी जिस चैकी पर बैठकर नहाते थे, वही रंगमंच बनती। उसी पर सरकंडे के खंभे पर कागज का चॅदोआ तानकर मिठाईयों की दुकान लगाई जाती। उसमें चिलम के खोचे पर कपडें के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचैरिया, गीली मिट्टी की जलेबियां, फूटे घड़ो के टुकडों के बताशे आदि मिठाईयाॅ सजाई जाती। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। हमीं लोग खरीददार और हमी लोग दुकानदार।

1. माता का अॅचल (शिव पूजन सहाय) छब्म्त्ज् नई दिल्ली कक्षा- 10 (पाठ्यक्रम) पृ. सं. 4
2. बच्चे काम पर जा रहे है (राजेश जोशी) छब्म्त्ज् नई दिल्ली कक्षा- 9 (पाठ्यक्रम) पृ. सं. 138-139
3. हिन्दी उर्दू शब्द कोश। 

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