Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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संत और प्रेमाश्रयी काव्यधारा में जायसी

    1 Author(s):  DR. SUBASH HEMRAJ PAWAR

Vol -  8, Issue- 1 ,         Page(s) : 28 - 30  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

हिंदी में भक्ति से संबंधित रखनेवाली भावधारा क¢ अनतर्गत संत काव्य का विशेष महत्व है। यद्यपि भक्ति-संबंधी काव्य की रचना करनेवाले सभी कविय¨ं क¨ ‘संत’ कहा जा सकता है। तथ्यपित ‘संत काव्य’ उन्हीं कविय¨ं की ‘वानिय¨ं’ का नाम है। जिन्ह¨ंने निर्गुण संम्प्रदाय क¢ अन्तर्गत काव्य रचना की है। यदि भारतीय दृष्टि से देखा जाए त¨ अद्वैतवाद और विशिष्ट द्वैत का मिश्रण सूफिमत की रूपरेखा है। विशिष्टद्वैतवाद की प्रेमामयी भक्ति ही सूफिमत में इश्क की साधना है। किन्तु उसमें कर्मकांड का स्थान नहीं है। क¢वल जप और ईश्वर की तन्मयता में ईश्वरानुभूति उसका लक्ष्य है। यद्यपि रहस्यवाद क¢ दर्शन हमे विठल संम्प्रदाय क¢ संन्त नामदेव क¢ काव्य में ह¨ते है, तथपि उसमें ज¨ं भक्ति क¢ बल पर बाह्यानुभूति का आनन्द उल्लास ही है।

1. सूफिमत साधना और साहित्य, रामपुजन तिवारी
2. हिंदी साहित्य, डॉ. धिरेंद्र वर्मा
3. मध्य कालीन संत साहित्य, डॉ. रामलेखवान पाण्डेय
4. उरी भारत की संत परंपरा, आ. परशुराम चतुर्वेदी
5. सगुण और निर्गुण संत साहित्य परंपरा, डॉ. आशा गुप्ता

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