Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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नागार्जुन के उपन्यासों में ग्रामीण यथार्थः वरूण के बेटे’ के विशेष संदर्भ में

    1 Author(s):  DR. BAL MUKUND PANALI

Vol -  3, Issue- 3 ,         Page(s) : 25 - 29  (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

सुविख्यात प्रगतिशील जनवादी कवि-कथाकार नागार्जुन वर्तमान युग के बहुचर्चित साहित्यकार है। ग्राम्य-जीवन के साथ-साथ नगर जीवन के यथार्थ वादी चित्रण की जिस मर्यादित परम्परा की शुरूआत कथा सम्राट प्रेमचंद ने की थी उसी का विकसित-व्यापक रूप नागार्जुन के कथा-साहित्य, विशेषतः उपन्यासों में दिखलायी पड़ता है। इनका ग्राम्य-जीवन-वर्णन इतना यथार्थपरक, स्वाभाविक एवं सहज है कि कथावस्तु की घटनाएॅ पाठक के मन-मस्तिष्क में चित्रवत् होती जाती है और यही उनकी अद्वितीय सफलता का कारण भी है। क्षेत्र-विशेष का प्रतिपाद्य या निरूपण उनकी रचनाओं की आॅचलिकता का आवरण प्रदान करता है। वह आॅचलिकता, जिसमें समस्त भारत के अभावग्रस्त, समस्याग्रस्त संघर्षरत जीवन उजागर हो उठता है।

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