Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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पताखोर - समाज की विकृति का प्रतिक
1 Author(s): DR. SUMAN
Vol - 10, Issue- 6 , Page(s) : 1 - 1 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
भारतीय परिवेश में फैली इस सामाजिक विषमता की नींव ‘अर्थ’ ही है। अर्थ का अभाव अर्थ के पीछे भागने वाली अंधी दौड़ ने मनुष्य में जो असंतोष की लहराती सर्पिणी को जिम्मेदार ठहराया है। मधु कांकड़िया की चिंता अजगर की भाँति फैलती नशे की प्रवृति है। जिससे समाज का ताना-बाना बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। 21वी. सदी का नया परिवेश अतिआधुनिकता का कलेवर पहने हुए मूल्यों में विघटित, बिखरता, टूटता और पछाड़े मारता दिखलाई पड़ता है।