Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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वैदिक भाषा में अर्थ परिवर्तन तथा उसकी दिशाएँ निरुक्त के संदर्भ में
1 Author(s): LALIT PRADHAN ARYA
Vol - 4, Issue- 4 , Page(s) : 99 - 104 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
भर्तृहरि ने शब्दब्रह्म को अनादिनिधन कहा है , (अर्थात् आदि और अन्त से रहित प्रवाहरूप से वर्त्तमान) शब्द भाषामात्र की मूलभूत इकाई है वह दो प्रकार का है ध्वन्यात्मक तथा वर्णात्मक। ध्वन्यात्मक ढोल, नगाड़ों से सुनाई पड़ने वाला शब्द है तथा वर्णात्मक संस्कृत भाषादि के रूप में है।