Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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दलित कहानी की परम्परा " दलित कहानी का उद्भव व विकास "

    2 Author(s):  MADHU RANI , SHAKUNTLA

Vol -  4, Issue- 4 ,         Page(s) : 111 - 120  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

‘‘भारत में सम्पूर्ण जनसंख्या का हर छठा व्यक्ति ‘अछूत’ है। भारतीय समाज में ‘अस्पृश्यता’ की कहानी सदियों से चलती आ रही है। भारत मंे यह ‘चतुर्वर्णीय व्यवस्था’ की देन है। हिन्दू धर्म की चतुर्वर्ण व्यवस्था में अछूतों को विभिन्न संदर्भ प्रदान किये गए हैं जैसे अवर्ण, अतिशूद्र, अन्यज या पंचम। इसका अर्थ यह है कि ये चतुर्वर्ण व्यवस्था में भी नहीं आते इसलिए इन्हें पंचम भी कहा जाता है। अछूतों को ‘दलित’ भी कहा जाता है, दलित का अर्थ है टूटा हुआ, दबा-कुचला, दला हुआ अर्थात् भारतीय जाति व्यवस्था में सबसे निम्नस्तर पर पाये जाने वाले टूटे हुए, मजबूर, निष्कासित एवं अमुक लोग।

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