Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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आदिवासी समाज और साहित्य

    1 Author(s):  DR.SUDHA NIKETAN RANJANI

Vol -  5, Issue- 1 ,         Page(s) : 95 - 99  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

निराला की प्रसिद्ध कविता’सरोज स्मृति की यह पंक्ति ‘दु:ख ही जीवन की कथा रही’ आदिवासी जीवन के संदर्भ में शब्दश: सही है। दु:ख- दर्द की यह दास्तां किसी एक व्यक्ति के जीवन से संबंधित नहीं है बल्कि यह पीड़ा सारे आदिवासी समाज की है। यह जाति केवल समाज में ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में पाई जाती हैं, लेकिन मैं बात अपनी बात भरतीय आदिवासी समाज और उनके सहित्य के संदर्भ में करुँगी। आदिवासी का शाब्दिक अर्थ है –‘आदिम युग में रहने वाली जातियां’ आदिवासी समुदाय आज भी ५००० वर्ष पुरानी भारतीय सभ्यता को संजोये हुए है |

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1. समकालीन जनमतए आदिवासी रूमिथ और यथार्थ. सितम्बर 2003ए अंक 2.3ए संपादकीय पृण् संण्. 5
2. वहीए
3. कथाक्रमए संपा. शैलेन्द्र सागरए अक्टूबर. दिसम्बर 2011ए अंक .50एविशेषांक. समाज और साहित्यए पृ. 17
4. वहीए
5. आदिवासी केंद्रित हिंदी साहित्यए पृण्.30 
6. कथाक्रमए संपा. शैलेन्द्र सागरए अक्टूबर. दिसम्बर 2011ए अंक .50एविशेषांक. समाज और साहित्यए पृ. 22

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