Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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भारत में लैंगिक असमानता और महिलाओं की दशा

    1 Author(s):  MANJUL MANOCHA

Vol -  5, Issue- 2 ,         Page(s) : 116 - 121  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

ढोल, ग्वार, शुद्र, पशु, नारी- ये सब ताड़न के अधिकारी ”,“पुत्रवती भव:” , “बेटी पराया धन है” इत्यादि तथा साथ ही मनुस्मृति की “औरत कभी स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होने लायक नहीं है , उसे विवाह से पहले पिता के , विवाह के बाद पति के और पति के बाद पुत्र के अधीन रहना चाहिये”|1 जैसी उक्तियाँ भारतीय समाज में फैली लैंगिक असमानता और महिलाओं की दशा को बताने के लिए काफी है | ज्ञात हो कि ऋग्वैदिक काल में नारियों कि अत्यधिक सम्मानजनक दशा थी किन्तु उत्तरवैदिक काल में उनकी गरिमा कम हुई और उनकी दशा उत्तरोत्तर गिरती गई |2 देश और दुनियां की आधी आबादी की इस शोचनीय दशा के लिए बहुत से कारणों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जिसमें पुरुषवादी-मानसिकता, पितृसत्तात्मकता को प्रमुख तौर पर कोसने की और बदलने की आवश्यकता है |

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