Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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भक्तिकाल के उदय की माक्र्सवादी अवधारणा

    1 Author(s):  DR ANJANI KUMAR SHRIVASTAVA

Vol -  4, Issue- 2 ,         Page(s) : 94 - 103  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

माक्र्सवादी आलोचना में भक्तिकाल के उदय को पूंजीवाद से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि व्यापारिक पूंजीवाद के उदय के साथ सामंतवादी ढाँचा टूटा जिससे भक्ति काव्यधारा के लिए जमीन तैयार हुई। इस संदर्भ में के. दामोदरन ने एंगेल्स के कथन का हवाला दिया है। एंगेल्स के अनुसार ”मध्य युग ने धर्म-दर्शन के साथ विचारधारा के अन्य सभी रूपों, दर्शन, राजनीति, विधि-शास्त्र को जोड़ दिया और इन्हें धर्म-दर्शन की उपशाखाएँ बना दिया। इस तरह उसने हर सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलन को धार्मिक जामा पहनने के लिए विवश किया। आम जनता की भावनाओं को धर्म का चारा देकर और सब चीजों से अलग रखा गया। इसलिए, कोई भी प्रभावशाली आन्दोलन प्रारंभ करने के लिए अपने हितों को धार्मिक जामे में पेश करना आवश्यक था।“

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