Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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मध्यकाल की अवधारणा और मध्यकालीन हिन्दी साहित्य

    1 Author(s):  RAVEENDRA PRATAP SINGH

Vol -  4, Issue- 3 ,         Page(s) : 70 - 74  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

मध्यकाल क्या है ? मध्यकालीन धारणा से क्या अभिप्राय है ? मध्यकालीनता से हम नकारात्मक अर्थ ग्रहण करते हैं। मध्यकाल समय के साथ-साथ एक मूल्य का बोध करता है। भारतीय एवं विश्व के इतिहास में एक समय विशेष को 'मध्यकाल या 'मध्ययुग जैसा नाम दिया गया है। दिलचस्प बात यह भी है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी 'मध्यकाल एक समय विशेष का दयोतक है। 'मध्यकाल की अवधारणा और मध्यकालीन हिन्दी साहित्य शीर्षक के अन्तर्गत 'मध्यकालीनबोध एवं मध्यकालीन हिन्दी साहित्य को समझने का प्रयास किया गया है।

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1. आक्सफोर्ड डिक्सनरी, डा. सुरेश कुमार एवं डा. रामानाथ शाही, पृष्ठ-749
2. वही, पृष्ठ-240
3. राजपाल हिन्दी शब्दकोश, (सं.) डा. हरदेव बाहरी, पृष्ठ-635
4. मध्यकालीन बोध का स्वरूप, डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ-17
5. वही, पृष्ठ-23
6. वही, पृष्ठ-18
7. साहित्य और आधुनिकता बोध, (सं.) कृष्णदत्त शर्मा एवं हरिमोहन शर्मा, (अध्याय-मध्यकालीन साहित्य को पढ़ने की दृष्टि-डा. नित्यानन्द तिवारी) पृष्ठ-249
8. मध्यकालीन बोध का स्वरूप, डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ-23
9. वही, पृष्ठ-23
10. वही, पृष्ठ-24
11. हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास, डा. रामस्वरूप द्विवेदी, पृष्ठ-21
12. वही, पृष्ठ-21 

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