Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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समकालीन कविता का अस्तित्व बोध

    1 Author(s):  DR REKHA

Vol -  4, Issue- 4 ,         Page(s) : 27 - 31  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

समकालीन का अर्थ है समान समय में अर्थात् अपने समय की समस्याओं के साथ रू-ब-रू होना। इसमें रचनाकार का सतत सरोकार वर्तमान की पीड़ा के साथ होता है और उसी की अभिव्यक्ति वह अपनी रचना में करता है। इसे आधुनिकता के समान रखकर समझने की भूल नहीं की जानी चाहिये । आधुनिकता एक दृष्टि है, बौद्धिक विकास की प्रक्रिया की एक स्थिति है। यह दृष्टिबोध पूरे युग के साथ बंधकर चलता है। इस पूरे युग में अनेकों समस्याएँ और संघर्ष होते हैं। समकालीनता का इन सभी समय की समस्याओं और संघर्षों से सम्बन्ध न होकर एक खास समय की समस्याओं से नाता-रिश्ता रहता है। यह समकालीनता जहाँ उग्र एवम् सीमित होती हैं वहाँ आधुनिकता इस उथल-पुथल के भीतर सतत् गतिशील चेतना को समझने वाली व्यापक असीम दृष्टि है।

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1. सुदामा पाण्डेय धूमिल; संसद से सड़क तक (बीस साल बाद) पृ0 12
2. डाॅ0 हरिचरण शर्मा; आधुनिक कविता प्रकृति और परिवेश, पृ0 186
3. हरीशंकर श्रीवास्तव; मेरी कविता मेरा कोढ़
4. श्रीराम वर्मा; कालपात्र पृ0 94
5. सुदामा पाण्डेय धुमिल; संसद से सड़क तक पृ0 114
6. अभियान पत्रिका, अंक 5 पृ0 17
7. अनिल कुमार; बात बनी रहे

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